जय श्री बाबोसा ।
श्री बाबोसा महाराज भज मन प्रेम करुना सागरम।
पंकज नयन पंकज अधर कर कंज पद कंजारुणं॥
अनंत अगणित अमित छवि नव अरुण निरध सुन्दरम।
पट रक्त मानव तडित रूचि सूचि नवमी माँ छगनी सुतम॥
पट रक्त मानव तडित रूचि सूचि नवमी माँ छगनी सुतम॥
भज दीन बन्धु हितेश भूत पिशाच प्रेत निकन्दनम।
कोठारी वंश तड़ाग हंस नमामि घेवर नंदनम ॥
कोठारी वंश तड़ाग हंस नमामि घेवर नंदनम ॥
सिर मुकुट उर मणि माल कुंडल कान तिलक मनोहरम।
चूरू नेर अति धाम सुन्दर नील अश्व विराजतम ॥
तेरी कृपा पंगु चले गुंगा करे संभाषणं।
निर्धन बने धनवान और कुष्ठी बने अति सुन्दरम ॥
संतानहीन को मिले संतति रूप शील उजागरम।
इति वदति "ओम प्रकाश" तज सब आस भज चूरू पतिम ॥
दोहा:
श्री बाबोसा अनुकूल रहे सदा उस दास पर।
बने वो मंगल मूल ये स्तुति जो सादर पढ़े ॥
चूरू नेर अति धाम सुन्दर नील अश्व विराजतम ॥
तेरी कृपा पंगु चले गुंगा करे संभाषणं।
निर्धन बने धनवान और कुष्ठी बने अति सुन्दरम ॥
संतानहीन को मिले संतति रूप शील उजागरम।
इति वदति "ओम प्रकाश" तज सब आस भज चूरू पतिम ॥
दोहा:
श्री बाबोसा अनुकूल रहे सदा उस दास पर।
बने वो मंगल मूल ये स्तुति जो सादर पढ़े ॥
No comments:
Post a Comment